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नृ॒वद्व॑सो॒ सद॒मिद्धे॑ह्य॒स्मे भूरि॑ तो॒काय॒ तन॑याय प॒श्वः। पू॒र्वीरिषो॑ बृह॒तीरा॒रेअ॑घा अ॒स्मे भ॒द्रा सौ॑श्रव॒सानि॑ सन्तु ॥१२॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

nṛvad vaso sadam id dhehy asme bhūri tokāya tanayāya paśvaḥ | pūrvīr iṣo bṛhatīr āre-aghā asme bhadrā sauśravasāni santu ||

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

नृ॒ऽवत्। व॒सो॒ इति॑। सद॑म्। इत्। धे॒हि॒। अ॒स्मे इति॑। भूरि॑। तो॒काय॑। तन॑याय। प॒श्वः। पू॒र्वीः। इषः॑। बृ॒ह॒तीः। आ॒रेऽअ॑घाः। अ॒स्मे इति॑। भ॒द्रा। सौ॒श्र॒व॒सानि॑। स॒न्तु॒ ॥१२॥

ऋग्वेद » मण्डल:6» सूक्त:1» मन्त्र:12 | अष्टक:4» अध्याय:4» वर्ग:36» मन्त्र:7 | मण्डल:6» अनुवाक:1» मन्त्र:12


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स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर विद्वज्जन क्या करें, इस विषय को कहते हैं ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे (वसो) वसनेवाले विद्वज्जन ! आप (अस्मे) हम लोगों में (तोकाय) कन्या और (तनयाय) पुत्र के लिये (पश्वः) पशु गौ आदि को तथा (सदम्) वर्त्तमान होते हैं जिसमें उस गृह और (बृहतीः) बड़ी (पूर्वीः) प्राचीन (आरेअघाः) दूर पाप जिनके उन (इषः) अन्न आदि सामग्रियों को (भूरि) बहुत (धेहि) धारण करिये जिससे (अस्मे) हम लोगों के लिये (इत्) ही (नृवत्) मनुष्यों के सदृश (भद्रा) कल्याणकारक (सौश्रवसानि) उत्तम प्रकार संस्कार से युक्त अन्न में हुए पदार्थ (सन्तु) हों ॥१२॥
भावार्थभाषाः - इस मन्त्र में उपमालङ्कार है। वे ही विद्वान् हैं, जो मातापिताओं के समान सांसारिक जनों के लिये हितकारक वस्तुओं को देते हैं ॥१२॥
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स्वामी दयानन्द सरस्वती

पुनर्विद्वद्भिः किं कर्त्तव्यमित्याह ॥

अन्वय:

हे वसो विद्वन् ! त्वमस्मे तोकाय तनयाय पश्वस्सदं बृहतीः पूर्वीरारेऽघा इषश्च भूरि धेहि। यतोऽस्मे इन्नृवद्भद्रा सौश्रवसानि सन्तु ॥१२॥

पदार्थान्वयभाषाः - (नृवत्) मनुष्यवत् (वसो) यो वसति तत्सम्बुद्धौ (सदम्) सीदन्ति यस्मिंस्तत् (इत्) एव (धेहि) (अस्मे) अस्मासु (भूरि) (तोकाय) (तनयाय) (पश्वः) पशून् गवादीन् (पूर्वीः) प्राचीनाः (इषः) अन्नादिसामग्री (बृहतीः) महतीः (आरेअघाः) आरे दूरेऽघानि पापानि यासान्ताः (अस्मे) अस्मभ्यम् (भद्रा) भद्राणि कल्याणकराणि (सौश्रवसानि) सुश्रवसि संस्कृतेऽन्ने भवानि (सन्तु) ॥१२॥
भावार्थभाषाः - अत्रोपमालङ्कारः। त एव विद्वांसो ये मातापितृवज्जगज्जनेभ्यो हितानि वस्तूनि ददति ॥१२॥
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माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - या मंत्रात उपमालंकार आहे. जे माता-पिता यांच्याप्रमाणे जगातील लोकांसाठी हितकारक पदार्थ देतात तेच विद्वान असतात. ॥ १२ ॥